Kavita Jha

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संयुक्त परिवार #पारिवारिक कहानी लेखनी प्रतियोगिता -19-Nov-2021

संयुक्त परिवार

आज कल संयुक्त परिवार में लोग कहाँ रहना चाहते हैं। कुछ लोगों की मजबूरी होती है ,अपनी नौकरी और काम के कारण परिवार से दूर रहना और कई लोग अपनी प्राईवेसी बनाए रखने के कारण भी अपने छोटे से परिवार में अलग रहना चाहते हैं।
      अब दादा दादी चाचा चाची.. सब एक साथ कहाँ रहते हैं बस मम्मी पापा और उनके बच्चे.. यानि छोटा परिवार।
     
इस कहानी की नायिका काव्या की जब शादी तय हुई पापा ने बताया था बहुत बड़ा परिवार है। काव्या के होने वाले पति चार भाई दो बहनें सबके बाल-बच्चे सब एक साथ रहते हैं। यह बात जब अपनी सहेली को बता रही थी तो उसका भाई जो उन दोनों की बातें सुन रहा था बोला दीदी इतना बड़ा परिवार सब का खाना एक साथ बनता है  क्या?? उसने अपना गणित लगाया और बोला 60-70 रोटियाँ एक बार में....  दीदी कैसे बनाओगे आप। तब तो मुस्कुरा दी थी काव्या। उसे खाना बनाना अच्छा लगता था।
     उसका भाई भाभी बच्चे वो सब भी तो उनके साथ ही रहते थे।खाना बनाने वाली बात की उसे चिंता बिलकुल नहीं थी। वो तो सिर्फ अपने मम्मी पापा, भाई-बहन, भाभी, भतीजे ,भतीजी, संगी सहेली और वो उसके अड़ोसी पड़ोसी जो कि एक परिवार की तरह ही रहते थे सब..   इन सब से  दूर एक नए शहर, नए लोग.....ना जाने कैसे होंगे... बस यही सोच चिंतित हो रही थी।
    जहाँ वो रहती थी वहाँ उस गली में उसकी चाची, मामी, मौसी, दीदी ,भाभी...हर पड़ोसी से एक रिस्ता बन गया था। सारे बच्चे उसे बुआ ही तो बोलते थे। परिवार ही तो था वो महावीर ईन्कलेव उसके लिए जहाँ वो रहती थी। वहाँ से दूर जाना उस परिवार से अलग होना... नहीं संभाल पा रही थी खुद को।
    शादी के बाद  नए परिवार के प्रत्येक सदस्य ने उसका स्वागत किया। बड़े संयुक्त परिवार में रहने के बहुत फायदे हैं जान गई थी वो। छोटी मोटी नोक झोंक के बाद भी परिवार में प्यार बना हुआ था। समय बीता उसके दो बेटे कैसे पल गए सबके बीच समय का पता ही नहीं चला।
     स्कूल में नौकरी शुरू की तो बेटे की देख रेख के लिए परिवार ने उसका सहयोग किया। मायके भी जाती तो बच्चे दादी के पास ही रहते। कभी कभार ले जाती अपने साथ तो संभालना मुश्किल ही हो जाता उसके लिए।
     उसका छोटे बेटा तो सभी भाई बहनों में सबसे छोटा होने के कारण सबका लाडला बनकर बिगड़ ना जाऐ अब यही चिंता सताती है उसको।
     फायदे और नुकसान दोनों ही तो है संयुक्त परिवार में रहने के।
    पेड़ की जड़ों की तरह ही तो इस परिवार की जड़ उसकी सासुमाँ है। उन्होंने ही तो सबको एक आँगन और एक ही छत के नीचे समेट रखा है।
   काव्या को यहाँ अपने ससुराल में जो सबसे ज्यादा अखरता है वो है इस परिवार का अपने में सिमट कर रहना। यहाँ अड़ोसी पड़ोसी किसी से कोई मतलब नहीं है। बीस साल के बाद भी वो इस गली में रहने वाले बहुत कम लोगों को ही जानती है। ना तो वो लोग किसी पड़ोसी के घर जाते हैं ना ही वो लोग उनके घर आते हैं।
    कोई भी त्यौहार या पूजा पाठ में परिवार के सब सदस्य ही रहते हैं। उसकी सासु माँ और जेठ, देवर किसी को भी बाहरी लोग हाँ इनके लिए तो आस पास वाले सारे लोग बाहरी ही है बिल्कुल पसंद नहीं है  किसी का आना जाना। वो तो जहाँ से आई है उसके लिए तो पूरी कॉलोनी ही उसके परिवार के सदस्यों की तरह थी।
कुछ दिन पहले उसके घर में बहुत बड़ी पूजा हुई थी। उसकी सास और जेठजी कई सालों से घर में मंदिर बनवाना चाह रहे थे। तीन दिन चले इस भव्य समारोह में परिवार के  सदस्य ही थे किसी पड़ोसी को नहीं बुलाया गया पर अंतिम दिन जिस दिन रूद्राभिषेक था सबने अपने अपने दोस्तों को निमंत्रित किया और तीनों बहुओं के परिवार वाले भी आऐ थे काव्या के मायके से तो कोई नहीं आया। पर उसे यह अखर रहा था कि हम जिस गली कॉलोनी में रहते है उन लोगों को जरूर बुलाना चाहिऐ ।जरूरत पड़ने पर सबसे पहले पड़ोस के लोग ही सहायता कर सकते हैं।
    उस दिन बहुत सारे लोग आऐ थे उसके घर पर पडो़स का कोई नहीं था। भोग का बहुत सारा प्रसाद बच गया था। उसे बार बार अपने मायके अपने उस महावीर ईंकलेव उस परिवार की याद आ रही थी कि कैसे वो दौड़ दौड़ कर पड़ोस की चाची, मौसी, दीदी, भाभी सबको बुलाने जाती थी जब घर में पूजा या कोई भी त्यौहार प्रोग्राम होता। वो सब मिलजुल कर तैयारी करती। गाना गाती प्रसाद बनाती।
परिवार का मतलब उसके लिए तो कुछ और ही है । आज भी जब कभी समय मिलता है तो वो उन पडो़सियों नहीं अपने परिवार वालों को फोन कर लेती है। उसकी अपनी भाभी बाद में आई उससे पहले ही वो नन्द और बुआ बन चुकी थी अपनी बेबी भाभी की और  मिकी मितु की।
   अपनी बड़ी बहन की बहुत इज्जत करती है पर उससे ज्यादा वो मन्जू दीदी, मधु दीदी की इज्ज़त के साथ साथ उनकी हर बात को हमेशा मानती आई है।
    बीस सालों में अपनी बहन तो उसके ससुराल नहीं आ पाई पर जब मन्जू दीदी आई थी उससे मिलने तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। बहुत खुश थी उस दिन वो।
   जब स्कूल में अपना परिचय लिखते समय भाई बहन की संख्या बताती थी तो टीचर भी हैरान हो जाती थी। हाँ छोटी थी तो यह सोचती काश बड़ा घर होता हमारा तो हमारा पूरा परिवार सारे लोग एक साथ रहते।
  
***
स्वरचित
कविता झा

   


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2 Comments

🤫

19-Nov-2021 09:47 PM

ऑलरेडी पोस्टेड...

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NEELAM GUPTA

19-Nov-2021 09:41 PM

बहुत सुंदर आस-पड़ोस से मिलता प्यार ।जब रिश्तो में बन जाता है। एक सुंदर प्यारा सा रिश्ता आपस में निभ जाता है वह सुंदर कहानी दिखे आपने

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